अध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश की जीवनी, इतिहास, जीवन सफ़र, मृत्यु और कहानी |

 

ओशो/रजनीश एक भारतीय रहस्यमयी गुरु और अध्यात्मिक शिक्षक थे. जिन्होंने गतिशील ध्यान को आध्यात्मिक अभ्यास का जरिया बनाया था. वह एक विवादास्पद नेता, वक्ता और योगी थे. उनके लाखों अनुयायी थे और इतनी ही संख्या में आलोचक/ विरोधी भी थे. ओशो ने रूढ़ीवादी समाज का विभिन्न विषयों पर विरोध किया. उन्होंने समाज में मौजूद धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों पर कई सवाल उठाए. ओशो एक अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त आध्यात्मिक गुरु थे.

ओशो रजनीश का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के एक छोटे से भारतीय गांव कुचवाड़ा में बाबूलाल और सरस्वती जैन के ग्यारह बच्चों के रूप में हुआ था. उनका वास्तविक नाम चंद्र मोहन जैन था. उनके पिता एक कपड़ा व्यापारी थे. ओशो ने अपना प्रारंभिक बचपन अपने दादा दादी के साथ बिताया और उनके साथ रहने में काफी स्वतंत्रता का आनंद लिया. उन्होंने अपने भविष्य के जीवन पर एक बड़ा प्रभाव डालने के लिए अपने शुरुआती जीवन के अनुभवों को श्रेय दिया था.

आचार्य रजनीश ने मुंबई और पूना में अपने आश्रम बनवाए । उन्होंने 1981 में अपने शिष्यों सहित अमेरिका जाकर रजनी-पुरम की स्थापना की, लेकिन अमेरिका सरकार ने उनके कुछेक शिष्यों को गैर-कानूनी कार्यों के कारण उन्हें वहां से जाने पर विवश कर दिया । उसके बाद आचार्य रजनीश भारत लौट उगए और फिर यही उन्होंने अपने अनुयायियों को शिक्षा दी । 19 जनवरी 1990 को उगचार्य रजनीश ने अंतिम समाधि ले ली । उनके अनुयायियों को इस समाचार से काफी दुख हुउग । ओशो तो चले गए, परंतु उनके द्वारा दिए ज्ञान की राह पर चलकर उगज भी मानव जीवन को सफल बनाया जा सकता है ।

ओशो (Osho) अर्थात श्री रजनीश का जीवन चाहे कितना ही विवादित रहा हो लेकिन उन्होंने लोगों को जीवन, मृत्यु, समाज, धर्म इत्यादि को देखने की नयी नज़र दी. ये बात पुणे स्थित आश्रम में उनकी समाधि पर लिखी बात से समझा जा सकता है. वहाँ लिखा है: ओशो, जो न पैदा हुए न मरे. इस धरती पर 11 दिसम्बर 1931 से 19 जनवरी 1990 के बीच भ्रमण के लिए आए.